Friday, November 22, 2024

स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी की गंभीरता को समझना होगा

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मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में लापरवाही का मामला

सौम्या ज्योत्सना, मुजफ्फरपुर, बिहार

Covid-19 महामारी के बाद देश में बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने की कवायद शुरू की गई थी. इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली है. लेकिन अभी भी देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां स्वास्थ्य के क्षेत्र में विशेष सुधार की ज़रूरत है. जहां डॉक्टरों की लापरवाही के कारण मरीज़ों की जान पर बन आती है. जहां उन्नत तकनीक की कमी की वजह से लोगों को बेहतर इलाज के लिए दिल्ली जाने पर मजबूर होना पड़ता है. बिहार भी देश के उन राज्यों में शामिल है जहां स्वास्थ्य व्यवस्था देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी खराब है. यहां की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल तब खुलती है, जब आम नागरिकों की जान पर बन आती है. कभी व्यवस्थाओं के अभाव के कारण तो कभी डॉक्टरों की लापरवाही के कारण लोगों को नुकसान उठाना पड़ता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण लीची के लिए दुनिया भर में अपनी पहचान बनाने वाला मुजफ्फरपुर है, जहां हाल ही में डॉक्टरों की लापरवाही के कारण लगभग 20 से ज्यादा लोगों की आंखें निकालनी पड़ी हैं.

बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित जूरन छपरा क्षेत्र को मेडिकल हब के रूप में जाना जाता है. यहीं रोड नंबर दो में वर्ष 1973 से संचालित आई हास्पिटल में 22 नवंबर को संविदा पर बहाल दो डॉक्टरों ने ऑपरेशन कैंप लगाकर एक ही दिन में मोतियाबिंद से पीड़ित 65 लोगों की आंखों का ऑपरेशन कर दिया. जबकि अस्पताल में मरीज़ों के लिए केवल दो ही बेड थे. लेकिन डॉक्टरों ने कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए 65 ऑपरेशन कर डाले, जिसके बाद बेड पर फैले बैक्टीरियल संक्रमण के कारण लोगों की आंखों में परेशानी होने लगी और आंख की पुतली बहने लगी. इसके बाद लोगों ने दोबारा आकर शिकायत दर्ज की लेकिन अस्पताल प्रशासन ने उनकी बातों पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया. मगर जब सभी मरीज़ों का दर्द बढ़ने लगा तो लापरवाही सामने आई. इस ऑपरेशन के बाद अब तक 20 से ज्यादा लोगों की आंखें मुजफ्फरपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज एसकेएमसीएच में निकाली जा चुकी हैं. लोग डॉक्टरों की लापरवाही से परेशान हैं लेकिन कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं है. अपनी आंखों की रौशनी बचाए रखने के लिए ही लोगों ने यह ऑपरेशन करवाया था, लेकिन उन्हें क्या पता था कि उन्हें अपनी आंखें ही गंवानी पड़ेंगी.

इस ऑपरेशन से प्रभावित होने वाले अधिकतर लोग ग्रामीण क्षेत्रों से संबंध रखते हैं. जो आर्थिक रूप से काफी कमज़ोर हैं और अपने आंखों के बेहतर इलाज के लिए दिल्ली तक जाने की क्षमता नहीं रखते हैं. इस संबंध में अखाड़ाघाट क्षेत्र की रहने वाली इस ऑपरेशन की पीड़िता सावित्री देवी की बेटी ने बताया कि “मां को देखने में समस्या थी, जिसके बाद उनका मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ था. अस्पताल प्रशासन ने 2000 रुपया भी ले लिया लेकिन ऑपरेशन के बाद से ही आंख में दर्द होने लगा और आंख की पुतली बहने लगी, जिसके बाद दोबारा अस्पताल में संपर्क करने पर अस्पताल वालों ने डरा धमका कर भगा दिया।” वहीं महुआ थाना क्षेत्र स्थित 65 वर्षीय अरविंदर ने बताया, “ऑपरेशन के पहले डॉक्टरों ने किसी तरह की कोई जांच नहीं की. ऑपरेशन के करीब एक घंटे के बाद ही आंख में दर्द होने लगा. जिसके बाद दोबारा अस्पताल जाकर दिखाया, जहां डॉक्टरों ने आंखों में आई ड्राप डाला लेकिन कुछ ठीक नहीं हुआ. उसके बाद राजधानी पटना रेफर किया गया, जहां भी आई ड्राप डालकर छोड़ दिया गया, मगर वापस आई हॉस्पिटल आने के बाद डॉक्टरों ने बताया कि उनकी आंख में इंफेक्शन हो गया है इसलिए आंख निकालना पड़ेगा।”

इसी प्रकार अपनी मां की आंखों का ऑपरेशन करवाने आई एक और ग्रामीण गोपा देवी ने बताया कि उनकी मां को आंखों से कम दिखाई देता था इसलिए हमने सोचा कि उनकी आंखों का ऑपरेशन करवा देते हैं ताकि वह अपना दैनिक कार्य कर सकें, जिसके बाद उन्हें आई हास्पिटल में भर्ती करवाया, लेकिन ऑपरेशन के बाद मां की परेशानी बढ़ गई. आंखों से पस निकलने लगा, सारी रात सिर में दर्द हुआ. इस बात की सूचना देने के लिए दोबारा आई हास्पिटल गए लेकिन डॉक्टरों ने अस्पताल के कर्मचारी के साथ पटना के अस्पताल में भेज दिया गया, जहां डॉक्टर ने बताया कि ऑपरेशन के कारण आंख पूरी तरह से संक्रमित हो चुका है और अब उनका आंख निकालना ही एकमात्र रास्ता है.” कमोबेश सभी लोगों की हालत ऐसी ही है. कुछ लोगों ने तो अपने परिवार पर बोझ न बन सकें इसलिए ऑपरेशन करवाया था मगर अब वही हमेशा के लिए अपने परिवार पर आश्रित हो गए हैं. इतनी बड़ी घटना के बावजूद डॉक्टरों की लापरवाही की इंतहा यहां तक हो गई कि उन्होंने कुछ लोगों का दाएं की बजाये बाएं आंख का ऑपरेशन कर दिया.

इस लापरवाही के बाद जूरन छपरा स्थित आई हास्पिटल को प्रशासन ने सील कर मामले की जांच शुरू कर दी है. इस संबंध में मुजफ्फरपुर के एसएसपी जयंत कांत ने कहा कि एफआईआर दर्ज करके जांच शुरू कर दी गई है. साथ ही मेडिकल बोर्ड का गठन करके आगे की कार्यवाही की जाएगी. वहीं मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन विनय कुमार शर्मा ने बताया कि स्पेशल टीम का गठन कर दिया गया है और दोषियों पर सख्त कार्यवाही की जाएगी. हालांकि सरकारी अस्पतालों में मोतियाबिंद का इलाज सही तरीके से ना होना, सरकार की नाकामी को दर्शाता है. इस संबंध में मुजफ्फरपुर के सांसद अजय कुमार निषाद ने बताया कि उन्हें यह जानकारी ही नहीं थी कि साल 2010 से सरकारी अस्पतालों में आंखों के ऑपरेशन की पूरी सुविधा नहीं है. उन्होंने आगे बताया कि वह सरकार से आग्रह करेंगे कि सरकारी अस्पतालों में जल्द से जल्द सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएँ. यह बहुत ही चौंकाने वाली बात है कि जनप्रतिनिधि को ही जानकारी नहीं है कि लोगों को अपनी आंखों की रोशनी पाने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ रही है.

मुजफ्फरपुर के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. शलभ सिन्हा के अनुसार लोगों की आंखों में संक्रमण Pseudomonas aeruginosa बैक्टीरिया के कारण हुआ। एसकेएमसीएच के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट ने आई हॉस्पिटल के ऑपरेशन थियेटर के बेड, ट्रॉली, माइक्रोस्कोप आदि से स्वाब लिया और उसे कल्चर किया, तब पता चला कि यही बैक्टीरिया लोगों की आंखों में था और संक्रमण यही से लोगों की आंखों में फैला. कोई भी शल्य क्रिया करने से पहले औजारों को स्टरलाइज करना पड़ता है ताकि संक्रमण समाप्त हो जाए, लेकिन स्टरलाइजेशन के दौरान हुई लापरवाही के कारण ही संक्रमण लोगों की आंखों में गया है. डॉ. शलभ के अनुसार लोगों को यह जानकारी ही नहीं है कि मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल एक चैरिटेबल संस्था द्वारा चलाई जाती है. चूंकि वहां पैसे कम लगते हैं इसलिए लोगों को लगता है कि वह एक सरकारी संस्था है. वहीं सदर अस्पतालों की हालत बहुत खराब है क्योंकि वहां डॉक्टर केवल वेतन लेते हैं मगर काम नहीं करते हैं. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल का एग्रीमेंट मार्च में ही समाप्त हो चुका था. अब तक एग्रीमेंट आगे नहीं बढ़ाया गया है और न ही सिविल सर्जन को इसकी जानकारी दी गई है।

एक आंकड़े के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष करीब 50 लाख लोगों की मौत चिकित्सकीय लापरवाहियों की वजह से होती है. कहीं सुविधाओं की कमी की वजह से तो कहीं डॉक्टरों की कमी इसका कारण बनती है. 57 लाख की आबादी वाले मुजफ्फरपुर में केवल 5000 मेडिकल स्टाफ हैं. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों से लेकर नर्स और वार्ड ब्वायज तक 53.21 प्रतिशत कर्मियों की कमी है. यह आंकड़े ही स्वास्थ्य व्यवस्था का आईना हैं, जिससे पता चलता है कि सरकार समेत प्रशासन लोगों की सेहत के प्रति कितनी गंभीर है. बहरहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि इस घटना के बाद सरकार और प्रशासन स्थिति की गंभीरता को समझते हुए राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं के ढांचे को मज़बूत बनाने पर ज़ोर देगा. (चरखा फीचर)

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