डॉक्टर चंचल शर्मा
आज के समय में ज्यादातर महिलाएं इनफर्टिलिटी की समस्या से परेशान है। इसका कारण एंडोमेट्रिओसिस हो सकता जोकि गर्भधारण में बाधा डालता है। विश्व स्तर की बात करें तो लगभग 17.6 करोड़ महिलाएं इस बीमारी से पीड़ित हैं। और भारत में करीब 2 करोड़ महिलाएं एंडोमेट्रिओसिस से ग्रस्त हैं। यह समस्या हर दस में से चार महिला को होती है। जिसमें सबसे ज्यादा 16 से 45 साल की उम्र की महिलाएं शामिल होती है। इसका मुख्य कारण पेटदर्द और गर्भधारण न कर पाना है।
एंडोमेट्रियोसिस एक प्रजनन विकार है जो महिलाओं को प्रभावित करता है। इस स्थिति में गर्भाशय की दीवारों को लाइन करने वाले टिशू गर्भाशय के बाहर बढ़ते हैं। और फिर यही टिशू गांठ बन जाते हैं। कभी-कभी, यह असामान्य रूप से अंडाशय और फैलोपियन ट्यूब जैसे अंगों का प्रभावित करता है। जोकि एक दर्दनाक स्थिति होती है। आमतौर पर, यह गांठ अपने आप समाप्त हो जाती है। यह 2 प्रकार का होते है- बाहरी और आंतरिक। गर्भाशय की मांसपेशियों की दीवार की बाहरी और आंतरिक दोनों हिस्से में पाया जाता है।
एंडोमेट्रियोसिस के लक्षण की बात करें तो पीरियड्स में हेवी ब्लीडिंग, दर्द और ऐंठन होना (Abdominal Pain), सेक्स के दौरान दर्द होना, पेशाब में जलन या दर्द होना, महावारी से पहले दर्द रहना, मल त्याग करने में असहज महसूस करना, थकान, दस्त और कब्ज की समस्या होना। इसका कोई सटीक कारण स्पष्ट रूप से तो नहीं बताया जा सकता है। लेकिन डॉक्टर चंचल शर्मा के अनुसार, आर्तव (मासिक धर्म का रक्त) का निर्माण रस धातु (पाचन और मेटाबॉलिज्म के बाद बनने वाला पहला ऊतक) से होता है। जब अहार की आदतें दोषपूर्ण होती हैं जैसे बहुत तैलीय या अधिक सूखा भोजन, असंगत खाद्य पदार्थ जैसे दूध के साथ फल, अत्यधिक जंक फूड, मांसाहारी या डेयरी प्रधान भोजन करना, आदि मेटाबॉलिज्म में बाधा डालता है। जिसके कारण रस धातु में सूजन और एंडोटॉक्सिन का निर्माण होता है, जो आर्तव (Menstruation Blood) को भी दूषित करता है।
अन्य कारक की बात करें तो खराब जीवनशैली, कब्ज की समस्या, पेशाब और मल त्याग करने से रोकना, अत्यधिक तनाव, और नशीली दवाओं के दुरुपयोग से विषाक्त पदार्थ बनने लगते है। जोकि बढ़ती एंडोमेट्रियम परत की वजह बनती है। और इससे प्रजनन अंगो पर असर पड़ने लगता है जो आगे चलकर ट्यूब और ओवरी को नुकसान पहुंच सकता है।
इसके इलाज की बात करें तो एलोपेथी के मुकाबले एंडोमेट्रियोसिस का नेचुरल ट्रीटमेंट बहुत प्रभावी होता है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी बूटियों और दवाओं का उपयोग करके एंडोमेट्रियोसिस का उपचार किया जाता है। इस पद्धति में मरीज का उपचार उसके स्थिति के आधार पर करते है। पंचकर्म थेरेपी भी एंडोमेट्रियोसिस की बीमारी को ठीक करने के लिए एक अच्छा विकल्प है। पंचकर्म पद्धति में उत्तर बस्ती थेरेपी में औषधियां, हर्ब, काढ़ा और बहुत सारे रसायनों द्वारा मेटाबॉलिज्म में सुधार, सूजन को कम करने और वात दोष को संतुलित कर एंडोमेट्रियोसिस की समस्या से निजात दिलाता है। इसको करने में मात्रा 15 से 20 मिनट तक का समय लगता है। यह थेरेपी लगातार तीन दिनों तक या रोगी के आवश्यकता के अनुसार किया जाता है।
साथ ही आयुर्वेद आहार-विहार पर सबसे ज्यादा जोर देते है क्योंकि अधिकतर बीमारियों की जड़ हमारा भोजन तथा जीवन शैली ही होती है। इसलिए एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित महिलाओं को अपने खानपान पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरुरत होती है। महिलाओं को अपने डाइट में फाइबर युक्त खाद्य पदार्थो को शामिल करना चाहिए। इसके अलावा हरी सब्जियाँ, पालक एवं एंटीऑक्सीडेंट भोज्य पदार्थो का सेवन जरुर करना चाहिए। खानपान के अलावा आयुर्वेद में कुछ हर्बल सप्लीमेंट तथा योग-प्राणायाम है जो आपको एंडोमेट्रियोसिस की समस्या से छुटकारा दिलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
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