कला की उपचारात्मक शक्ति के बारे में माना जाता है कि वह नीरस वातावरण को स्वागत करने वाला और आनंद से भरा बना सकती है। इसी मकसद के तहत सरकार द्वारा संचालित संस्थानों में कला को लाने की पहल के तहत स्टार्ट इंडिया फाउंडेशन ने एशियन पेंट्स के साथ मिलकर पहली स्टार्ट केयर पहल लॉन्च की है। इस पहल के अंतर्गत लाभान्वित होने वाला नोएडा के सेक्टर 30 सिथत द पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ (उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान) पहला संस्थान है। स्टार्ट केयर की इस पहली परियोजना के पीछे खासकर नन्हे मरीजों के लिए अस्पताल के तनावपूर्ण और डराने वाले अनुभव को ज्यादा अनुकूल बनाने का विचार है। कला मध्यस्थताएं चरणबद्ध तरीके से से कुछ वर्षों में शुरू होंगी। पहले चरण में अस्पताल के बाहरी भाग पर ध्यान दिया जाएगा।
दरअसल, अस्पताल का भौतिक वातावरण मरीज के ठीक होने के समय को प्रभावित करता है। स्वास्थ्यरक्षा के समग्र अनुभव पर आधारित अध्ययन भी बताते हैं कि बच्चों की मनोधारणा को बदलने और उनमें आनंद की भावना बढ़ाने में सुंदर वातावरण का महत्वपूर्ण योगदान होता है। जब शिशुओं का सामना नए लोगों और रिश्तों, जैसे— अस्पताल के कर्मचारी से होता है तब उन्हें अलगाव और अपरिचित होने की चिंता होती है। उन्हें अक्सर अपने परिवार के बिना लंबा समय बिताना होता है और वे घर के आराम को मिस करते हैं। अस्पताल में अपरिचित वातावरण बच्चों को भयभीत और चिंतित कर देता है। इसलिए अस्पताल में सुखद और स्वागत करने वाला वातावरण तैयार करने की आवश्यकता है।
अस्पताल में मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक और भौतिक स्तरों को प्रभावित करने वाले आर्किटेक्चर और आंतरिक सज्जा भी मरीजों को स्वस्थ होने में सहायता कर सकती है। ऐसे में मरीज और उसके परिवार पर केंद्रित वातावरण में समानुभूति और अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्यरक्षा सेवाएं प्रदान करना महत्वपूर्ण है। कला स्वास्थ्यरक्षा प्रदाता के साथ मरीज और उसके परिवार के संतोष और कुल मिलाकर देखभाल की गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद करती है। यह कार्यस्थल के भीतर कर्मचारियों का संतोष भी बढ़ाती है।
इस संबंध में स्टार्ट इंडिया फाउंडेशन के सह-संस्थापक अर्जुन बहल बताते हैं, ‘हम स्टार्ट केयर के बैनर तले पहली परियोजना शुरू करते हुए उत्साहित हैं। स्टार्ट केयर का लक्ष्य है कला को ऐसी जगहों पर ले जाकर उनका कायाकल्प करना, जिनकी आमतौर पर उपेक्षा की जाती है, जैसे— बच्चों के अस्पताल, ओल्ड एज होम, अनाथालय, आदि। हमारा मिशन ऐसी जगहों में योगदान देना है, जिनका वित्तपोषण सरकारें, एनजीओ और गैर-लाभार्थी करते हैं। इस योगदान के तहत उन्हें देखने योग्य वर्णन, रंग और जीवंतता मिलेगी। शोध बताते हैं कि आंतरिक जगहों में कला और रंगों के होने से ठीक होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है, क्योंकि इससे मरीजों, डॉक्टरों और देखभाल करने वालों का मूड अच्छा हो जाता है और उनका मनोबल बढ़ता है। इससे इन जगहों से जुड़ी निराशा और अनिश्चितता भी दूर हो जाती है। हम आभारी हैं कि इस विचार में हमारा भागीदार एशियन पेंट्स इस प्रकार की जीवंत परियोजनाओं में हमारा साथ दे रहा है। मैं द पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ, नोएडा के प्रबंधन और शिक्षकों का भी शुक्रिया अदा करता हूं, जिन्होंने पहले संस्करण पर हमारे साथ काम किया है और ऐसी जगहें बनाने के हमारे विचार को साकार किया है, जहां कला ऐसे लोगों के लिये सुलभ हो, जिन्हें उसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।’
वहीं, पोस्टग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ के निदेशक प्रोफेसर अजय सिंह ने कहा, ‘एशियन पेंट्स और स्टार्ट इंडिया फाउंडेशन के साथ मिलकर अस्पताल के परिदृश्य में कला को लाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि ऐसे बच्चे जल्दी ठीक हो सकें, जो हमारे पास बाहरी या आंतरिक रोगी सेवाओं के लिए आते हैं। इस परियोजना के फेज—1 में भवन के आगे के भाग का कायाकल्प हो रहा है, जिसके लिए बच्चों के भित्ति-चित्र हैं, जो प्रसन्नता, प्रकृति और सकारात्मकता दिखाते हैं। हमें आशा है कि इस तरह के आर्ट इंस्टालेशंस हमारे उन बच्चों को ठीक करने में लंबी दूरी तय करेंगे, जो हमारे अस्पताल में आएंगे। अगले चरण के तौर पर हमारे संस्थान के बाहरी और आंतरिक रोगी वार्ड्स, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड रूम्स, ऑपरेशन थियेटर्स, आदि में एक फोटो गैलरी और आर्ट इंस्टालेशंस की योजना है। हमारा संस्थान बच्चों की सुपर स्पेशियल्टी केयर करता है और यह हमारे देश का एक अनूठा संस्थान है। विकसित देशों के कई बच्चों के अस्पतालों में इस तरह के आर्ट इंस्टालेशंस हैं।’
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