कभी मैट्रिक की परीक्षा वाले दिन भी गोभी और बैगन बेचा, अब दूसरों को कर रहे हैं शिक्षित

ए एन शिब्ली

यह बात 1988 की है, बिहार में मैट्रिक की परीक्षा हो रही थी। एक लड़का जिसका परीक्षा केंद्र दरभंगा में राज हाई स्कूल था, वह रोजाना लगभग 20 किलोमीटर दूर अपने घर धेपुरा से गोभी और बैगन लेकर जाता पहले उसे दरभंगा शहर में टावर चौक के पास बेचता और फिर जाकर मैट्रिक की परीक्षा देता। आज वही लड़का एक स्कूल स्थापित कर सैकड़ों बच्चों को शिक्षित कर रहा है और उसकी एक ही तमन्ना है जीवन में जो कठिनाई उसने झेली, वह कोई दूसरा बच्चा नहीं झेले और बेहतर शिक्षा हासिल करने के बाद वह आसान और शानदार जीवन गुजारे।
1988 में गोभी बैगन बेचते हुए मैट्रिक की परीक्षा देने वाले उस छात्र का नाम है हरि नारायण यादव जिन्हें इलाके के लोग ‘उमेश नर्सरी वाले’ के नाम से ज्यादा जानते हैं।
हरि नारायण यादव आज मधुबनी जिला के धेपूरा में इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के नाम से एक स्कूल चलाते हैं जहां वह बच्चों को दसवीं तक की शिक्षा दे रहे हैं। फिलहाल आठवीं तक उनका स्कूल रिकॉग्नाइज्ड है और वह दसवीं तक की रिकॉग्निशन की कोशिश में लगे हुए हैं। हरि नारायण पिछले दिनों के बारे में बताते हैं कि एक समय ऐसा था जब मैं खीरा में नमक लगाकर बेचा करता था, एक समय ऐसा भी था जब मुझे मैट्रिक की परीक्षा देनी थी लेकिन परीक्षा देने वाले दिन भी मैं गोभी और बैंगन बाजार ले जाकर बेचता था। उसके बाद सबसे पहले हमने उमेश नर्सरी के नाम से पौधा बेचना शुरू किया, धीरे धीरे एक दिन ऐसा आया जब यह नर्सरी दूर-दूर में बहुत मशहूर हो गई। फिर उन्होंने शौचालय बनवाने का काम भी शुरू किया।
हरि नारायण ने सोचा कि उनकी उम्र बढ़ती जा रही है, ऐसे में उन्हें कोई ऐसा काम शुरू करना चाहिए जिससे उन्हें भागना दौड़ना भी कम पड़े और समाज की सेवा भी हो सके।
यही सोच कर उन्होंने इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल की स्थापना की और एक टाइम में ऐसा आया कि थोड़े समय में ही उनके स्कूल में 800 से अधिक बच्चे हो गए। आज कोविड की वजह से बहुत से बच्चों ने अपना नाम कटवा लिया लिया है इसके बावजूद स्कूल में 500 से अधिक बच्चे शिक्षा पा रहे हैं।
हरि नारायण कहते हैं मेरा अतीत बहुत कठिनाई में गुजरा है, मैंने बहुत मेहनत की है हम सभी भाइयों ने बहुत परेशानी झेली है उसके बाद हमने सोचा कि अब स्थिति को बेहतर किया जाए और कुछ ऐसा किया जाए कि खुद की हालत भी बेहतर हो और समाज के लिए भी कुछ कर सकें।
हरि नारायण की कोशिश है कि पैसे की कमी से कोई भी शिक्षा से वंचित ना रहे। उन्होंने बताया कि मेरी कोशिश होती है कि जिस गार्जियन के पास पैसों की दिक्कत है वह फीस अदा नहीं कर सकते ऐसे बच्चों को वह फीस में छूट भी देते हैं। कई बच्चे ऐसे भी हैं जिनसे वह फीस नहीं लेते और उनको किताबें भी उपलब्ध कराते हैं।
यादव जी कहते हैं कि मुझे पैसों की लालच नहीं है अगर मुझे पैसे की लालच होती तो मैं दूसरा बहुत सारा बिजनेस कर सकता था और मेरे पास नर्सरी के अलावा फर्नीचर का भी बिजनेस है मगर स्कूल खोलने का मकसद मेरा यह है कि मैं यहां से बेहतर इंसान पैदा कर सकूं। वह कहते हैं कि मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं जब हमारे बच्चे डॉक्टर बनेंगे, इंजीनियर बनेंगे, अफसर बनेंगे और वह मेरे स्कूल का और देश का नाम रोशन करेंगे।
अपने पुराने दिनों को याद करते हुए हरि नारायण यादव कहते हैं कि हम लोग जब स्कूल की फीस देते थे तो हम बहुत मुश्किल से पैसा जमा कर पाते थे, हमने बहुत कठिनाई के दिन देखे, अब मैं चाहता हूं समाज के सब लोग सुखी रहे और सुखी रहने के लिए शिक्षा प्राप्त करना सबसे जरूरी है। वह कहते हैं कि अशिक्षित आदमी भी अमीर हो सकता है लेकिन शिक्षा हासिल करने के बाद जो खुशी मिलती है वह दौलत हासिल करने के बाद नहीं मिलती।
बचपन के दिनों में बहुत परेशानी झेलने वाले हरि नारायण यादव जी लोगों से अपील करते हैं कि आप चाहे किसी भी धर्म के हों आप अपने बच्चों को शिक्षा जरूर दिलाइए। वह कहते है, शिक्षा ही एक ऐसी चीज है जो इंसान को इंसान बनाती है हिंदू या मुसलमान नहीं बनाती। शिक्षा हासिल करने के बाद लोगों को यह समझ आती है कि क्या सही है और क्या गलत है। शिक्षा हासिल करने वाले लोग समाज के उत्थान में मददगार साबित हो सकते हैं।
हरिनारायण यादव ने स्कूल के लिए लगभग डेढ़ बीघा जमीन तैयार रख रखी है और उनकी कोशिश है कि आने वाले दिनों में वह इस स्कूल को बहुत ही अच्छी पोजीशन में ले जाएं और उन्हें उम्मीद है कि अगर लोगों का समर्थन मिलता रहा तो वह एक दिन जरूर एक शानदार स्कूल स्थापित करने में सफल हो जाएंगे।

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