नई दिल्ली। एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पिटल्स, द्वारका के डॉक्टरों ने 26 हफ्तों के बाद एक समयपूर्व प्रसव सफलतापूर्वक कराया, क्योंकि माँ सवाईकल अक्षमता से पीड़ित थी। इस विकृति में माँ कमजोर सर्वाईकल टिश्यूज़ के कारण पूरी अवधि तक गर्भ धारख करने में समर्थ नहीं होती है। माँ को गर्भ के 18 वें हफ्ते से ही गंभीर सर्वाईकल अक्षमता थी। माँ में संक्रमण के कारण 26 हफ्ते में प्रिएक्लैंपसिया, और झिल्ली समय से पहले फट गई। आम तौर से शिशु के लिए प्लेसेंटा से कम खून सप्लाई होने के कारण यह स्थिति उत्पन्न होती है।
शिशु में विकृतियां सबसे पहले 18वें हफ्ते में पाई गईं, और सर्वाईकल अक्षमता के कारण भिन्न-भिन्न अत्याधुनिक थेरेपीज़ की मदद से गर्भ को 26 हफ्ते तक पहुंचाया गया, जिसके बाद शिशु का जन्म करा दिया गया। डिलीवरी के वक्त शिशु के फेफड़े अविकसित थे, क्योंकि उन्हें माँ से पर्याप्त पोषण न मिल पाया था। शिशु का जन्म डॉ. विनय कुमार राय और उनकी टीम ने कराया। जन्म के वक्त उसका वजन 900 ग्राम था। बाद में उसका इलाज कर उसे विश्वस्तरीय उपचार दिया गया ताकि समस्याओं को टाला जा सके।
इसके बारे में डॉ. विनय कुमार राय, कंसल्टैंट – नियोनैटोलॉजी, पीडियाट्रिक्स, एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पिटल, द्वारका ने कहा, ‘‘माँ को जिन जटिलताओं का सामना करना पड़ा, उस मामले में यह सबसे दुर्लभ स्थिति थी। हमारे सामने 18वें हफ्ते में प्रि-एक्लैंपसिया की चुनौती आई, जिसके कारण आम तौर पर गर्भपात हो जाया करता है। सर्वाईकल अक्षमता के कारण यह स्थिति और ज्यादा मुश्किल बन गई। टीम द्वारा किए गए सघन प्रयासों के बाद भी शिशु के फेफड़े अविकसित थे, और उन्हें उचित रूप से वृद्धि शुरू करने में लगभग एक महीने का समय लगा। इस तरह के अन्य मामले भी हैं, लेकिन यहां पर ध्यान देने वाली बात अंगों की, खासकर फेफड़ों की वृद्धि है। आम तौर से शिशु के फेफड़े उचित रूप से विकास करने में असमर्थ होते हैं।’’
केवल 26 हफ्तों में ही जन्मा बच्चा जीवित बचे रहना, चिकित्सा जगत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। यह उत्तर भारत में समयपूर्व जन्मे सबसे छोटे बच्चों में से एक है। यह एक दुर्लभ स्थिति है, जिसमें 26 हफ्तों के गर्भ में शिशु के बचने की संभावना केवल 20 से 30 प्रतिशत होती है। इन सभी मुश्किलों को पार करते हुए इस शिशु ने डिलीवरी के 2 महीने बाद अस्पताल से छुट्टी पा ली और उसका वजन बिना किसी जटिलता के 2 किलोग्राम से ज्यादा था।