ज़िन्दगी लम्बी नहीं, बड़ी होनी चाहिए

ए एन शिब्ली
ज़रा सोचिज़ि आपका अपना बेटा किसी ऐसी बीमारी से ग्रस्त हो जिसका कोई इलाज भी नहीं है और इस बीमारी से उसे बहुत ज़्यादह तकलीफ भी होती है और जब आप सोचें कि इस से अच्छा है कि आपका बेटा मर जाए और सरकार उसे अपनी जान लेने की इजाज़त दे दे मगर न बीमारी ठीक हो रही है और न अदालत आपको मरने की छूट दे रही है इसी को लेकर मां और बेटे में जो संघर्ष है उसी को इस हफ्ते रिलीज़ हुई फिल्म सलाम वेंकी में दिखाया गया है। माँ के रोल में काजोल ने एक लाचार मां की ज़बरदस्त एक्टिंग की है और बीमार बेटे के रोल में विशाल जेठवा ने अपनी शानदार एक्टिंग से सबको हैरान कर दिया है।
फिल्म में इच्छामृत्यु यानि यूथनेशिया के बारे में है। यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित पर है जिसमें हैदराबाद के एक लड़के वेंकटेश की कहानी है। फिल्म एक पुस्तक `द लास्ट हुर्रा’ पर आधारित है। खतरनाक बीमारी, हर नए दिन एक नयी परेशानी , माँ का दर्द , बेटे की अंग दान की इच्छा , अदालत में जान दे देने की इजाज़त, अदालत का इंकार इन सब चीज़ों को जिस शानदार ढंग से पेश किया गया है उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है।

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